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Saturday, April 5, 2014

संवेदनशील कविता 04-05



अशोक चक्रधर भैया ने एक संवेदनाशील कविता लिखी उसके जवाब में हमने भी कुछ पंक्तीयाँ लिखी आशा हैं आपको पसंद आएंगी। (श्याम)


इतनी संवेदनशील कविता लिखते हैं क्यूँ आप,
आंसू सारे महंगाई को रोते सूख  गए ,

अब लाये कहाँ से आंसू .
वैसे भी मुस्कान का बड़ा अभाव  हैं,

कुछ ऐसा लिखिए श्रीमान की,
मुस्कान कि बाढ़ आजाये चक्रधर  मेहरबान।

कैसे अशोक हैं आप ???

एक अशोक था जिसने शोक फैलाया तलवार कि धार से,
और एक आप हैं जो फैला रहे हैं, कलम के वार से।

देश काल परिस्तिथि, खुद एक शोक सागर हैं,
भवसागर ही भवसागर हैं, भाव सागर कि आवश्यकता नहीं थी।

क्यों किया वार आपने जनता पर, जो हैं निहत्ते और निढ़ाल।

अब तक रही हैं जनता आपकी ओर, चकोर दृस्टी से,
कि "अशोक" शोक का संहार करे, अपने शब्द बाण से।

कविता एक पर्व ख़ुशी का हैं, मौसम-ए- मातम नहीं।

हिंदी कविता , श्याम, श्यामसुंदर पंचवटी , अशोक चक्रधर 

अशोक चक्रधर बय्या की कविता 


मेरा नाम है माया,
मैंने अभी खाना नहीं खाया।
पिंकी पी चुकी है दुद्धू,
हमीं हैं बुद्धू।
मेरी तीन बहनें हैं
दो बड़ी एक छोटी,
मां सेक रही है रोटी।
सेक कर गिनेगी,
अच्छी अच्छी चुनेगी।
पहले भैया और बाबा को
खिलाएगी,
फिर हमारी बारी आएगी।
बड़ी बहनें चौराहे पर
घुमाएंगी कटोरा,
बाबा गिनेगा, कितना बटोरा?
बहनें शाम तक
लगी रहेंगी धंधे पर,
में पिंकी को झुलाऊंगी कंधे पर।
भाई को भीख नहीं मिलती
तो गुस्सा हो जाता है,
पिंकी की जाली ओढ़ के
सो जाता है।
मैं पिंकी को उछालती हूं
भाई गालियां बकते हुए
जाली को उछालता है।
मैं पिंकी को पालती हूं
वो गुस्से को पालता है।
भरतपुर वाला गाना सुन के
पिंकी सो जाती है,
भाई लात मारता है
तो फ़जीहत हो जाती है।
मैं उसे लड़-झगड़ कर
भगाती हूं,
पिंकी को फिर से
लुटने की लोरी
सुना कर सुलाती हूं।
जाली में लग रही है
कितनी प्यारी,
मेरी पिंकी पिंकी
राजकुमारी!
भाई आ जाए तो
यहां बिठाऊंगी,
फिर भगवान जी का
कौर निकाल के
मैं भी खाऊंगी!

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